Tuesday, July 8, 2014

SAANSAD.. VYANGYA KAVITA

ये सांसद ना जाने क्यूँ लड़ते झगड़ते हैं]
संसद  चलने से पहले ही स्थगित कर देते हैं। 

एक दूसरे की बुराई खोद खोद कर निकलते हैं] 
खुद कीचड़ मे बैठ औरों पर कीचड़ उछालते हैं। 

चूहे  बिल्ली का खेल जनता को दिखाते हैं] 
हो हल्ला मचाकर कुर्सी टेबल उछालते हैं। 

जनता की छोड़ बस अपनी सोचते हैं]
इस चक्कर में एक दूसरे के ही बाल नोचते हैं। 

ये सांसद ना जाने क्यूँ लड़ते झगड़ते हैं]
संसद चलने से पहले ही स्थगित कर देते हैं। 

भारत माँ की गोद में बैठ बंदर नाच दिखाते हैं]
सच और झूठ की लड़ाई छोड़s] जनता को आपस में लड़ाते हैं। 

सारी  बुराई तुम में हैंs] तुम क्या देश चलाओगेs]
तुम्हारी जेबें भर जाएंगीs] तब तो हमारी भर पाओगे 

ये जनता का पैसा हैs] इसे न यूँ गवाओं तुमs] 
संसद चलने से पहले स्थगित न करते जाओ तुम। 

अपनी बात रखकरs] औरों की भी सुनना हैs] 
सही राह चुनकरs] एक सफल भारत की सोच बुनना  है। 

लोगों की प्रेरणास्त्रोत बनकरs] अच्छा नाम कमाना हैs] 
वीआईपी  नहीं आम बनकरs] पूरे देश को सिखाना  है। 

माफ़ करना मुझे जितनी समझ थीs] मैंने सन्देश पहुँचाया हैs] 
भारत का एक नागरिक होने का मैंने फ़र्ज़ निभाया है।


- श्रीमती निर्मला अग्रवाल 

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